A Poet of Elements

Wednesday, April 30, 2008

दूर जा के खुद को खुद से आज़माना चाहता हूँ
रोते रोते थक गया हूँ मुस्कुराना चाहता हूँ

दोस्तों कि दोस्ती, अपनों परायों का भरम
इन सभी रिश्तों को फिर से आज़माना चाहता हूँ

मैं किसी से कुछ कहूँ, ना कोई मुझ से कुछ कहे
पुर सुकूँ खामोश सी दुनिया बसाना चाहता हूँ

कब हुआ कैसे हुआ क्योंकर हुआ किसने किया
अब किसी काँधे पे सर रखकर बताना चाहता हूँ

ज़फर क्यों मिटते नहीं हैं ज़ेहन से उसके नुकूश
किस लिए किसके लिए खुद को मिटाना चाहता हूँ

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