ज़ुल्मत-ए-शब में उजालों की तमन्ना ना करो
ख्वाब देखा है तो अब ख्वाब को रुस्वा ना करो
बोझ सूरज का पड़ेगा तो लचक जाएगी
रात की सुरमई शाखों पे बसेरा ना करो
ख्वाब, उम्मीद, नशा, साँस, तबस्सुम, आँसू
टूटने वाली किसी शै पे भरोसा ना करो
हम ने आँखों को जलाया था कि कुछ धुंध छंटे
तुम नई नस्ल के सूरज हो, तुम ऐसा ना करो
अश्क पीने का हुनर सीख लो हम से आकर
जज़्बा-ए-दिल को निगाहों से हवेदा ना करो
मौसमी बर्फ हैं कुछ देर में बह जाएँगे
इन बदलते हुए रिश्तों पे भरोसा ना करो
ये फ़िज़ा रास ना आएगी तुम्हें ए ज़फ़र
याद गुज़रे हुए लम्हात की ताज़ा ना करो
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