दूर जा के खुद को खुद से आज़माना चाहता हूँ
रोते रोते थक गया हूँ मुस्कुराना चाहता हूँ
दोस्तों कि दोस्ती, अपनों परायों का भरम
इन सभी रिश्तों को फिर से आज़माना चाहता हूँ
मैं किसी से कुछ कहूँ, ना कोई मुझ से कुछ कहे
पुर सुकूँ खामोश सी दुनिया बसाना चाहता हूँ
कब हुआ कैसे हुआ क्योंकर हुआ किसने किया
अब किसी काँधे पे सर रखकर बताना चाहता हूँ
ज़फर क्यों मिटते नहीं हैं ज़ेहन से उसके नुकूश
किस लिए किसके लिए खुद को मिटाना चाहता हूँ