A Poet of Elements

Sunday, September 19, 2010

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जो उतर चुका वो तो चाँद था
जो न चढ़ सका वो शबाब क्या

यहाँ फासलों से गुरेज़ कर
भला ईश्क़ में ये लिहाज़ क्या

जहाँ सिलवटों के निशान हों
वाँ सवाल क्या, वाँ जवाब क्या

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Wednesday, August 12, 2009

दूर दूर तक कोई जब नज़र नहीं आता
आँख का परिंदा भी लौट कर नहीं आता

मौत भी किनारा है वक़्त के समंदर का
और ये किनारा क्यों उम्र भर नहीं आता

ख्वाहिशें कटहरे में चीखतीं ही रहती हैं
फैसला सुनाने को दम मगर नहीं आता

दूर भी नहीं होता मेरी दस्तरस से वो
बाज़ूओं में भी लेकिन टूट कर नहीं आता

अपने आप से मुझ को फ़ासले पे रहने दे
रौशनी की शिद्दत में कुछ नज़र नहीं आता

मैं कभी ज़फर उसको मानता नहीं सूरज
बादलों के ज़ीने से जो उतर नहीं आता

Monday, May 11, 2009

ज़ुल्मत-ए-शब में उजालों की तमन्ना ना करो
ख्वाब देखा है तो अब ख्वाब को रुस्वा ना करो

बोझ सूरज का पड़ेगा तो लचक जाएगी
रात की सुरमई शाखों पे बसेरा ना करो

ख्वाब, उम्मीद, नशा, साँस, तबस्सुम, आँसू
टूटने वाली किसी शै पे भरोसा ना करो

हम ने आँखों को जलाया था कि कुछ धुंध छंटे
तुम नई नस्ल के सूरज हो, तुम ऐसा ना करो

अश्क पीने का हुनर सीख लो हम से आकर
जज़्बा-ए-दिल को निगाहों से हवेदा ना करो

मौसमी बर्फ हैं कुछ देर में बह जाएँगे
इन बदलते हुए रिश्तों पे भरोसा ना करो

ये फ़िज़ा रास ना आएगी तुम्हें ए ज़फ़र
याद गुज़रे हुए लम्हात की ताज़ा ना करो

Friday, February 06, 2009

Hail the Silence of the Lamb

To the silence of the lamb,
I revert time and again.
But the call of its silence,
Shall brook no acquiescence,

In the depth of a cellar somewhere,
Even now I can feel
Life being skinned off the bones
While the world over passes by,

The lamb in his pen,
The pen in its holder,
The soul in a limbo,

And God in the poster,
Such is the eerie silence all around,
Giving away the majestic weave,
Of lies, stunts, and deceits,

Hail the lamb!
Hail the silence!!
Hail the silence of the lamb!!!

A word to the Axis

You have the power to create,
As shall not let you hesitate,
To crucify the bombed–dead,
‘Cause the dead has nothing to state.

His voice has no sound,
His pen lacks steam to frown,
Your color is white, his is brown,
And your writ runs across the town.

Your immense pride in your superior might,
Shall not let you a moment's insight,
How deeply unjust were you in your victorious fight,
When you scripted the narrative of my death,
And executed the script on my neck,
You then gave it a name – suicide!!

Long after my death though,
My eyes can see through the rubble -
You, sunk deep in the puddle of my blood,
Your stolen victory, meeting with history's mud!!

Friday, January 16, 2009

aitabaar toote to...

baaqi phir bachega kya
tere mere rishte me
ye hi ik to wahid hai
jo abhi talak baaqi
saath apna deta hai.....

aitbaar toote to
saans meri tootegi
meri saans qayam hai
aitbaar se tujh pe ..

aankh band kar ke main
tujhko apna maane hun
aitbaar toote to
tu mera rahega kya?
tu mera raha na jo
mera phir rahega kya ?
aitbaar toote to.....

Friday, August 29, 2008

बारिश


आँचल तेरी यादों का भिगो देती है बारिश
सोचों पे जमी गर्द को धो देती है बारिश

हंस हंस के सुनती है जहाँ भर के फ़साने
पुछूं तेरे बारे में तो रो देती है बारिश

लगते हैं पराये मेरी आँखों को मनज़िर
हैरत मेरे एहसास को वो देती है बारिश

यादों की महक हो की तेरे हिज्र के ताने
चुप-चाप मैं रख लेता हूँ जो देती है बारिश

मुझ पर तो जो करती है सो करती है इनायत
मोती तेरे बालों में पिरो देती है बारिश

Wednesday, April 30, 2008

दूर जा के खुद को खुद से आज़माना चाहता हूँ
रोते रोते थक गया हूँ मुस्कुराना चाहता हूँ

दोस्तों कि दोस्ती, अपनों परायों का भरम
इन सभी रिश्तों को फिर से आज़माना चाहता हूँ

मैं किसी से कुछ कहूँ, ना कोई मुझ से कुछ कहे
पुर सुकूँ खामोश सी दुनिया बसाना चाहता हूँ

कब हुआ कैसे हुआ क्योंकर हुआ किसने किया
अब किसी काँधे पे सर रखकर बताना चाहता हूँ

ज़फर क्यों मिटते नहीं हैं ज़ेहन से उसके नुकूश
किस लिए किसके लिए खुद को मिटाना चाहता हूँ

दरिया मिले शजर मिले कोह-ए-गिरां मिले
बिछड़े मुसाफिरों का भी कोई निशाँ मिले

ये विस्ल भी फरेब-ए-नज़र के सिवा नहीं
साहिल के पार देख ज़मीं आसमाँ मिले

ऐसी जिगर-ख़राश कहाँ थीं कहानियाँ
रावी के रंज भी तो पस-ए-दास्ताँ मिले

जाने मुसाफिरों के मुक़द्दर में क्या रहा
किश्ती कहीं मिली तो कहीं बादबां मिले

जिस को जुनूं कि ज़र्द दुपहरों ने चुन लिया
शाम-ए-सुकूं मिली न उसे साइबां मिले

बारिश में भीगती रही तितली तमाम शब
आई सहर तो रंग धनक में अयां मिले

पुख्ता छतें भी अब के यकीं से तही मिलीं
पक्के घरों में खौफ के कच्चे मकाँ मिले

शब्बीर दिल का शहर तो हैरान कर गया
झरने कहीं मिले, कहीं आतिश-फशां मिले