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जो उतर चुका वो तो चाँद था
जो न चढ़ सका वो शबाब क्या
यहाँ फासलों से गुरेज़ कर
भला ईश्क़ में ये लिहाज़ क्या
जहाँ सिलवटों के निशान हों
वाँ सवाल क्या, वाँ जवाब क्या
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दूर दूर तक कोई जब नज़र नहीं आता
ज़ुल्मत-ए-शब में उजालों की तमन्ना ना करो
To the silence of the lamb,
You have the power to create,
baaqi phir bachega kya
दूर जा के खुद को खुद से आज़माना चाहता हूँ
रोते रोते थक गया हूँ मुस्कुराना चाहता हूँ
दोस्तों कि दोस्ती, अपनों परायों का भरम
इन सभी रिश्तों को फिर से आज़माना चाहता हूँ
मैं किसी से कुछ कहूँ, ना कोई मुझ से कुछ कहे
पुर सुकूँ खामोश सी दुनिया बसाना चाहता हूँ
कब हुआ कैसे हुआ क्योंकर हुआ किसने किया
अब किसी काँधे पे सर रखकर बताना चाहता हूँ
ज़फर क्यों मिटते नहीं हैं ज़ेहन से उसके नुकूश
किस लिए किसके लिए खुद को मिटाना चाहता हूँ
दरिया मिले शजर मिले कोह-ए-गिरां मिले